ईसाईयों ने 1942 में ही ब्रिटिश शासकों को दे दिया था भारत से चले जाने का अल्टीमेटम
बम्बई के ईसाईयों के अल्टीमेटम की हुई ख़ूब चर्चा
8 अगस्त, 1942 को गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की घोषणा कर दी थी और उन्हें अगले ही दिन ग्रिफ़्तार कर लिया गया था। तब बम्बई के ईसाईयों ने अंग्रेज़ सरकार को बड़े स्पष्ट रूप में यह घोषणा कर दी थी कि जब भी द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो जाएगा, तो ब्रिटिश शासकों को हर हालत में भारत छोड़ कर सदा के लिए चले जाना होगा। तब यह ब्रिटिश शासकों को भारतीय मसीही समुदाय का अल्टीमेटम माना गया था; अर्थात तभी अंग्रेज़ हकूमत को यह कह दिया गया था कि वे द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होते ही तुरन्त देश छोड़ कर चले जाएं और हुआ भी ऐसे ही। इसी लिए मसीही समुदाय के इस अल्टीमेटम की तब काफ़ी चर्चा होती रही थी। नैश्नल क्रिस्चियन काऊँसिल भी तब भारत के ऐसे मसीही नेताओं के समर्थन मे आ गई थी। इसी लिए उसने भी मसीही समुदाय के पूर्णतया राष्ट्रीय संघर्ष में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी थी। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति तथा देश की अन्य विभिन्न मसीही संस्थाओं ने भी इस बात को अस्वीकार कर दिया था कि ‘देश के ईसाईयों व अन्य अल्प-संख्यकों को अन्य समुदायों से अलग माना व समझा जाएगा।’
बिश्प अज़रियाह ने जानबूझ कर किया था गांधी जी के आन्दोलनों का विरोध
बम्बई में मसीही समुदाय की अखिल भारतीय कान्फ्रेंस में देश के अन्य समुदायों की राष्ट्रवादी इच्छाओं का समर्थन किया गया था। परन्तु उस समय बिश्प वी.एस. अज़रियाह (दक्षिण भाारत के प्रोटैस्टैन्ट बिश्प) ने तब अपने विचार प्रकट करते हुए था कि अवज्ञा आन्दोलन व असहयोग आन्दोलन जैसे अभियानों से देश को स्वतंत्रता नहीं मिल सकती परन्तु तब बहुत से मसीही नेताओं ने बिश्प के इस ब्यान की सख़्त निंदा की थी। श्री एस.के. जॉर्ज जो उस समय गांधी जी के बहुत नज़दीक थे, ने भी बिश्प अज़रियाह की सख़्त आलोचना की थी। वैसे बिश्प अज़रियाह स्वय भी गांधी जी को बहुत करीब से जानते थे व पहले कई आन्दोलनों में उनका साथ भी दे चुके थे; परन्तु उस समय उन्हें यह लगने लगा था कि गांधी जी अब देश के मसीही प्रचारकों को अच्छा नहीं मानते, इसी लिए उन्होंने ऐसा ब्यान दिया था।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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